गला-काट स्पध्र्दा के दौर से पत्रकारिता जगत गुजर रहा है। पत्र-पत्रिकाओं का नियमित प्रकाशन करना आसान कार्य नहीं है। बावजूद उसके मीडिया प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से सबसे अधिक लोगों को रोजगार प्रदान कर रहा है। आज की इस भीषण महंगाई के दौर में पत्र-पत्रिकाओं को नियमित प्रकाशित करना अपने आप में प्रबंधक एवं मालिकों के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि कही जाएगी। एक पत्र-पत्रिका को जीवित रखने के लिए उसके प्रकाशक को न जाने कितनी चुनौतियों से गुजरना पड़ रहा है। ऐसे में कैसे रह पायेगा प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ मजबूत? पत्रकारिता जगत से जुड़े लोगों व उनके परिवार को प्रशासन की ओर से जितनी सुविधाएं मिलनी चाहिए, वे उन्हें आज भी हासिल नहीं है। राज्य तथा केन्द्र सरकार को विभिन्न प्रभागों में सेवारत अधिकारियों को सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली तमाम सुविधाएं पहले दिन से ही मिल जाती हैं जबकि पत्रकारिता जगत से जुड़े लोगों को पूरा जिन्दगी गुजर जाने के बाद भी कुछ नहीं मिलता। मिलती है तो पुलिस की लाठियां और अपराधियों तथा भ्रष्टाचार में डूबे लोगों की गालियां। ऐसे समय पत्रकारों को संरक्षण हेतु व अपराधियों पर नकेल कसने हेतु कड़क कानून बनाने की आवश्यकता है। इस हेतु सरकार को आगे आने की जरूरत है। नॉन बेलेबल जुर्म दर्ज करने की मांग भी मीडिया में उठ रही है। यदि ऐसा कानून बनता है तो पत्रकार निर्भीक होकर अपना कार्य कर सकता है।
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